सीता माता तुम्हार करत सुरता रे,
झर झर बहै आंसू भीजथे कुरता रे
पथरा तक पिघले टघलैं माटी रे।
सुनवइया के हाय फटत छाती रे,
कोनों देतेव आगी में जरि जातेंव रें,
जिनगी में सुख नइये में मरि जातेवें रे।
कहिके सीता माता अगिन मांगिन रे,
कुकरी के बरोबर कलपे तो लागिन रे।
ठौका तउने बखत टपकाय दियेंव में,
चिन्हा मु दरी तुम्हरेला गिराय दियेंव में।
झपर सीता माता उठाके तउने छिन,
अकबक होके येती वोती देखिन रे।
मुंदरी ला चिन्हें अपन घर के,
लेइस छाती छुवाय आंखी में धर के।
भगवान ऐला कैसे के कोन पाइस,
पुर लंका में मुदरी कहां ले आईस रे।
घबरा के डेराय के पूछंत सीता माय,
मैं उतर तउने बखत पकड़ लियेंव पांव।
मोला आसीस देके हाथे ला धरि के,
लकठा में बैठाइन मया ला करिके।
अंचरा आंसू पोंछत पू छे ला लागिन बात,
पेट घुसे सांस नहि सुसकत जात।
तुम कोनउ भइया कहां ले आयेव रे,
ये मुदरी ला कैसे कहां ले पायेव रे।
अतका जल्दी बता देतेव तुम,
मोर मन के फिकर ला मिटा देतेव तुम।
– कुंवर दलपति सिंह